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    October 08, 2025

    चार्जर के बाद अब केबल भी आउट! टेक कंपनियों की ‘ग्रीन पॉलिसी’ पर उठे सवाल

    पिछले कुछ समय से स्मार्टफोन बॉक्स लगातार हल्के होते जा रहे हैं। पहले कंपनियों ने चार्जिंग एडॉप्टर हटाया, अब बारी लगती दिख रही है यूएसबी केबल की। हाल ही में एक Reddit पोस्ट में खुलासा हुआ कि Sony Xperia 10 VII के बॉक्स में न तो चार्जर है, न ही केबल। बॉक्स पर साफ लिखा है कि यह गलती नहीं, बल्कि कंपनी का सोचा-समझा फैसला है।

    बाकी कंपनियां भी कर सकती हैं फॉलो

    सोनी हमेशा से इंडस्ट्री ट्रेंड्स के साथ चलती आई है। इसलिए एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह कदम आने वाले समय में नया इंडस्ट्री स्टैंडर्ड बन सकता है।
    चार्जर हटाने का ट्रेंड सबसे पहले Apple ने शुरू किया था, फिर Samsung और Xiaomi जैसी कंपनियों ने भी इसे फॉलो किया। अब लगता है कि जल्द ही नए फोन बॉक्स में यूएसबी केबल न होना भी आम बात बन जाएगी।

    पर्यावरण बचाने का तर्क या मुनाफे का खेल?

    कंपनियों का दावा है कि यह कदम ई-वेस्ट कम करने और प्लास्टिक उपयोग घटाने के लिए है। उनका कहना है कि “अधिकतर लोगों के पास पहले से कई केबल हैं, नई देने की जरूरत नहीं।”
    लेकिन सच्चाई यह भी है कि इससे कंपनियों की लागत घटती है और मुनाफा बढ़ता है। जब करोड़ों फोन बिकते हैं, तो ये छोटी बचत अरबों में बदल जाती है। ऊपर से, यही केबल बाद में अलग से बेचकर कंपनियां अतिरिक्त मुनाफा कमाती हैं।

    अनब्रांडेड केबल का खतरा

    अगर आपके पास पुरानी केबल्स हैं भी, तो वे हमेशा भरोसेमंद नहीं होतीं। सस्ती या लोकल केबल से स्लो चार्जिंग, ओवरहीटिंग या शॉर्ट सर्किट का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में बार-बार नई केबल खरीदनी पड़ती है — यानी ई-वेस्ट और बढ़ता है, और कंपनियों का “ईको-फ्रेंडली” दावा कमजोर पड़ जाता है।

    एपल और सोनी ने शुरू किया नया ट्रेंड

    पहले Apple ने अपने AirPods पैक से USB-C केबल हटाई, अब Sony ने अपने स्मार्टफोन में यही रास्ता अपनाया है। अगर इतिहास खुद को दोहराता है, तो जल्द ही Samsung, OnePlus और Xiaomi जैसी ब्रांड्स भी इस ट्रेंड में शामिल हो सकती हैं।

    यूजर्स की राय बंटी हुई

    कई यूजर्स का कहना है कि “हर किसी के पास पहले से केबल है, हटाना ठीक है।” वहीं कुछ का तर्क है — “जब हजारों रुपये देकर फोन खरीदते हैं, तो चार्जिंग केबल तो बेसिक जरूरत है।”
    आपका क्या मानना है — क्या कंपनियां सच में प्लानेट बचा रही हैं या सिर्फ प्रॉफिट बढ़ा रही हैं?

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